BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 8

भारतेन्दु युग

 

प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।

अथवा
हिन्दी गद्य के विकास का क्रमिक परिचय देते हुए भारतेन्दु जी का योगदान बताइए।
अथवा
आधुनिक हिन्दी साहित्य के विकास में भारतेन्दु युग की क्या देन है?

उत्तर -

आलोच्य युग में जन-चेतना पुर्नजागरण की भावना से अनुप्राणित थी फलस्वरूप सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में न केवल अतिरिक्त सक्रियता थी, अपितु इन सब में गहन अन्तः सम्बन्ध विद्यमान था। भारतेन्दु युगीन कवि-कर्तव्य पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इसकी परिणति विषय चयन में व्यापकता और विविधता के रूप में हुई। श्रृंगारिक रसिकता, अलंकरण मोह, रीति निरूपण, प्रकृति का उद्दीपनात्मक चित्रण प्रभृति रीतिकालीन प्रवृत्तियों का महत्व क्रमशः कम होता गया और भक्ति और नीति को प्रमुख वर्ण्य विषयों के रूप में ग्रहण करने का आग्रह भी नहीं रह गया। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने जनता को उद्बोधन प्रदान करने के उद्देश्य से जातीय संगीत अर्थात लोकगीत की शैली पर सामाजिक कविताओं की रचना पर बल दिया। राष्ट्रीय भावना का उदय भी इस काल की अनन्य विशेषता है। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण परमहंस और विवेकानन्द के विचारों तथा थियोसोफिकल सोसाइटी के सिद्धान्तों का प्रभाव भी जल जीवन पर पड़ रहा था। आर्थिक, औद्योगिक और धार्मिक क्षेत्रों में पुर्नजागरण की प्रक्रिया आरम्भ होने लगी थी। पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली ने शैक्षिक क्षेत्र में भी वैयक्तिक स्वतन्त्रता की प्रेरणा प्रदान की। अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार यद्यपि जनता से सम्पर्क साधन और प्रशासकीय आवश्यकताओं के लिए किया जा रहा था, पर अंग्रेजी साहित्य के अध्ययन ने अन्य देशों के साथ तुलना का अवसर प्रदान किया और इस तरह से राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए उचित वातावरण बन सका। मुद्रक यन्त्रों के विस्तार और समाचार पत्रों के प्रकाशन ने भी जन-जागरण में योग दिया। परिणामस्वरूप तत्कालीन साहित्य - चेतना मध्यकालीन रचना- प्रवृत्तियों तक ही सीमित न रहकर नवीन दिशाओं की ओर उन्मुख होने लगी।

आलोच्य युग में यों तो शताधिक कवियों ने विविध प्रवृत्तियों के अन्तर्गत काव्य रचना की है, किन्तु उनमें भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बद्रीनारायण चौधरी प्रेमधन, प्रतापनारायण मिश्र, जगन्मोहन सिंह, अम्बिका दत्त व्यास और राधाकृष्ण दास ही प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं।

 

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र - कविवर हरिश्चन्द्र ( 1750 - 1775 ) इतिहास प्रसिद्ध सेठ अमीरचन्द की वंश परम्परा में उत्पन्न हुए थे। उनके पिता बाबू गोपाल चन्द्र 'गिरिधरदास भी अपने समय के प्रसिद्ध कवि थे। हरिश्चन्द्र ने बाल्यावस्था में ही काव्य रचना आरम्भ कर दी थी और अल्पायु में काव्य और सर्वोतोन्मुखी रचना क्षमता का ऐसा परिचय दिया था कि उस समय के पत्रकारों तथा साहित्यकारों ने 1770 ई. में इन्हें भारतेन्दु की उपाधि से सम्मानित किया था। कवि होने के साथ ही भारतेन्दु पत्रकार भी थे कविवचन सुधा और हरिश्चन्द्र चन्द्रिका उनके सम्पादन में प्रकाशित होने वाली प्रसिद्ध पत्रिकाएं थी। नाटक, निबन्ध आदि की रचना द्वारा उन्होनें खड़ी बोली की गद्य शैली के निर्धारण में भी महत्वपूर्ण योग दिया था। उनकी काव्य कृतियों की संख्या 70 हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं जिनमें प्रेम मालिका, प्रेम सरोवर, गीत गोविन्दानन्द, वर्षा विनोद, विनय प्रेम पचासा, प्रेम फुलवारी, वेणुगीत आदि विशेषतः उल्लेख योग्य हैं। इन्होनें इतिवृत्तात्मक काव्य शैली के साथ ही उनमें हास्य-व्यंग्य का पैनापन भी विद्यमान है। उर्दू शैली में भी कविताएं लिखी हैं।

बद्री नारायण चौधरी प्रेमधन - भारतेन्दु-मण्डल के कवियों में प्रेमधन का प्रमुख स्थान हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर के एक सम्पन्न ब्राह्मण कुल में हुआ था। भारतेन्दु की भाँति उन्होंनें भी पद्य और गद्य दोनों में विपुल साहित्य-रचना की है। साप्ताहिक 'नागरी नीरद' और मासिक आनन्द कदाम्बिनी के सम्पादन द्वारा उन्होनें तत्कालीन पत्रकारिता को भी नयी दिशा दी। भारतेन्दु के काव्य में प्राप्त होने वाली सभी प्रवृत्तियाँ प्रेमधन की रचनाओं में समुपलब्ध हैं। 'लालित्य लहरी के वन्दना सम्बन्धी दोहों और 'बृजचन्द पंचक' में उनकी भक्ति भावना व्यक्त हुई है। उदाहरण स्वरूप पार्लियामेंट के सदस्य. दादाभाई नरौजी को जब विलायत में 'काला' कहा गया, तब उन्होनें इस पर यह क्षोभपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की थी -

अचरज होत तुमहुं समगोरे बाजत कारे।
तासों कारे 'कारे' शब्दहु पर हैं वारे ॥
कारे कृष्ण, राम, जलधर जल बरसावन वारे।
कारे लागत ताही सो कारन कौं त्यारे।

प्रेमधन ने मुख्यतः ब्रजभाषा में काव्य-रचना की है, किन्तु खड़ी बोली के लिए उनके काव्य में विरक्ति नहीं थी। वे कविता में भाव-गति के कायल थे, न तो उन्हें भाषा के शुद्ध प्रयोग की चिन्ता थी और न वे यतिभंग से विचलित होते थे। छन्दोबद्ध रचनाओं के अतिरिक्त उन्होनें लोक संगीत की कजली और लावनी शैलियों में भी सरस कविताएँ लिखी हैं।

प्रताप नारायण मिश्र - ब्राह्मण सम्पादक प्रताप नारायण मिश्र का जन्म (1756 - 1794) बैजे गाँव जिला उन्नाव में हुआ था। पिता के कानपुर चले जाने के कारण उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई थी। ज्योतिष का पैतृक व्यावसाय न अपनाकर वे साहित्य रचना की ओर प्रवृत्त हुए। कवित, निबन्ध, नाटक उनके मुख्य रचना क्षेत्र हैं। कानपुर के रंगमंच और वहां की साहित्यिक संस्था 'रसिक समाज' से उनका निकट सम्बन्ध था। 'प्रेम पुष्पावली', 'मन की लहर', 'लोकोक्ति शतक', 'नृत्यन्ताम' और 'श्रृंगार विलास' उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।

जगन्मोहन सिंह - ठाकुर जगन्मोहन सिंह (1757 - 1799) मध्य प्रदेश की विजय राघवगढ़ रियासत के राजकुमार थे। उन्होनें काशी में संस्कृत और अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की वहाँ रहते हुए उनका भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से सम्पर्क हुआ, किन्तु भारतेन्दु की रचना, शैली की उन पर वैसी छाप नहीं मिलती जैसी प्रेमधन और प्रताप नारायण मिश्र में लक्षित होती है। श्रृंगार वर्णन और प्रकृति-सौन्दर्य की अवतारणा उनकी मुख्य काव्य कृतियाँ हैं जिन्हें उनकी काव्य कृतियों प्रेम संपत्तिलता, श्यामलता, श्यामा सरोजनी, देवयानी में सर्वत्र पाया जा सकता है।

अम्बिकादत्त व्यास - कविवर दुर्गादत्त के पुत्र अम्बिकादत्त व्यास काशी निवासी सुकवि थे। व संस्कृत और हिन्दी के अच्छे विद्वान थे और दोनों भाषाओं में साहित्य रचना करते थे। 'पीयूष प्रवाह' के सम्पादक के रूप में भी उन्होनें अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। उनकी काव्य कृतियों में 'पावस पचासा', 'सुकवि सतसई', और 'हो हो होरी' उल्लेखनीय है। उन्होनें खड़ीबोली में 'कंस वध' शीर्षक प्रबन्ध काव्य की रचना भी आरम्भ की थी किन्तु इसके तीन सर्ग ही लिखे जा सके।

राधाकृष्ण दास - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई राधाकृष्ण दास बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कविता के अतिरिक्त उन्होनें नाटक, उपन्यास और आलोचना के क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय साहित्य रचना की है। उनकी कविताओं में भक्ति, श्रृंगार और समकालीन सामाजिक-राजनीतिक चेतना को विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। 'भारत- बारहमासा' और देश दशा समसामयिक भारत के विषय में उनकी प्रसिद्ध कविताएँ हैं, इनका एक सवैया देखिए -

मोहन की यह मोहनी सूरत, जीय से भूलत नाहिं भुलाये।
छोरन चाहत नेह को नातो, कोऊ विधि छूटत नाहि छुराये।

अन्य कवि - भारतेन्दु युग में समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक परिवेश के प्रति जिस जागरूकता का उदय हुआ था, उसका निर्वाह उस काल के गौण कवियों में नहीं मिलता। उनकी रचनाओं में भक्ति भावना और श्रृंगार वर्णन की प्रमुखता रही है। इस सम्बन्ध में सर्वप्रथम नवनीत चतुर्वेदी का नाम आता है। इनकी प्रसिद्ध कृत 'कुब्जा पचीसी' रीति पद्धति की सरस रचना है। इनके शिष्यों में जगन्नाथ दास रत्नाकर ने आगे चलकर विशेष ख्याति प्राप्त की। गोविन्द गिल्ला भाई कृत 'शृंगार सरोजनी', 'पावस पयोनिधि', 'राधामुख सोड़वी और षडऋतु भी भक्ति और प्रेम-वर्णन सम्बन्धी रचनाएँ हैं।

भारतेन्दु युग हिन्दी गद्य के बहुमुखी विकास का युग है। इसके पूर्व जिन गद्य लेखकों- राजा लक्ष्मण सिंह, राजा शिवसाद सितारे हिन्द, नवीनचन्द्र राय और श्रद्धाराम फुल्लौरी का उल्लेख इतिहास ग्रन्थों में किया गया है। उनकी कृतियों का साहित्यिक महत्व नहीं के बराबर है। राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द ने छात्रों के लिए पाठ्य पुस्तकें तैयार की नवीन चन्द्रराय के साहित्य की मूल प्रेरणा धार्मिक हैं और श्रद्धाराम फुल्लौरी भी धार्मिक व्यक्ति थे। राजा लक्ष्मण सिंह का 'अभिज्ञानशाकुन्तल' का अनुवाद अवश्य एक उत्तम अनुवाद कृति है, किन्तु इसका प्रचार शुद्ध भाषा नीति के कारण ही हुआ।

वस्तुतः उपर्युक्त लेखकों का महत्व खड़ी बोली गद्य के स्वरूप विकास के क्रम में अदा की कई भूमिकाओं के कारण है। इस युग में मुख्य संघर्ष हिन्दी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। फारसी के स्थान पर हिन्दी की प्रतिष्ठा दिलाने के लिए किये गये प्रयत्न ही जागरण के आधार बनें। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों राजा शिवप्रसाद और राजा लक्ष्मण सिंह ने हिन्दी के स्वरूप निर्धारण प्रश्न पर दो सीमान्तों का अनुगमन किया। राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का समर्थन किया और राजा शिवप्रसाद ने हिन्दी का गंवारूपन दूर करते-करते उसे उर्दू-ए-मुअल्ला बना दिया। इन दोनों के बीच सर्वमान्य हिन्दी गद्य की प्रतिष्ठा कर गद्य साहित्य की विविध विधाओ के विकास का ऐतिहासिक कार्य भारतेन्दु युग में पूरा हुआ। उनके सहयोगियों और समर्थकों ने उनके द्वारा प्रशस्त पथ पर चलकर हिन्दी की जो सेवा की वह अविस्मरणीय है। भारतेन्दुकालीन साहित्य सांस्कृतिक जागरण का साहित्य है। इस युग में रचित गद्य साहित्य की प्रत्येक विधा नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध, आलोचना के समीक्षात्मक परिचय में विशेषतः इस सांस्कृतिक जागरण का स्वरूप ही स्पष्ट होता है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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